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बक्सर युध्द, इलाहाबाद संधियॉं और द्वैत शासन

 

बक्सर युध्द किस किस के मध्य हुआ

  • बक्सर का युध्द 22 अक्टूबर 1764 को मीर कासिम, नबाब सिजाउदौला, मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय तथा अंग्रेजों के मध्य हुआ

मीर कासिम की योजना

  • अवध पहुँचने के पश्चात मीर कासिम ने अवध के नबाब सिजाउदौला, मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय इनके साथ मिल कर बाहर निकालने की योजना बनायी
  • इन तीनों के सेना में लगभग 40-50 हजार सैनिक थे और जो मेजर हेक्टर मुनरो था उसके नेतृत्व में लगभग 7हजार सैनिक थे
  • इनकी सेना इनका त्रिकुट और मेजर मुनरो की सेना 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर (बिहार) में भिडंत हुई जिसमें अंग्रेजों की विजय हुयी
  • मीर कासिम वहाँ से भाग गया और 12 वर्षो बाद उसकी मृत्यु हो गयी
  • इसके बाद नबाब सिजाउदौला और मुगल सम्राट के साथ अलग-अलग संधियाँ की गयी

इलाहबाद की संधि

  • इलाहबाद संधि इलाहबाद की प्रथम संधि मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के साथ की गयी और इलाहबाद की द्वितीय संधि नबाब सुजाउदौला के साथ की गयी

इलाहबाद की प्रथम संधि

  • इलाहबाद की प्रथम संधि 12 अगस्त 1765 को हुयी इसमें सम्राट ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को बंगाल,बिहार और उडीसा के दीवानी अधिकार प्रदान कर दिये अब कम्पनी इन इलाकों की वास्तविक स्वामी बन गयी
  • मुगल बादशाह को अवध के कडा और इलाहबाद जिले प्रदान कर दिये गये व कम्पनी के द्वारा 26 लाख रुपये वार्षिक पेंशन उसे दे दी गयी

इलाहबाद की द्वितीय संधि

  • इलाहबाद की द्वितीय संधि जो अवध के नबाब सिजाउदौला के साथ की गयी थी उसमें नबाब को कडा और इलाह्बाद के जिले मुगल सम्राट शाह आलम को देने थे
  • नबाब को युध्द क्षतिपूर्ति के रूप में 50 लाख रु. अंग्रेजो को देने थे अगर वह ये शर्त मानता था तो अवध का राज्य नबाब को वापस मिलता
  • इस युध्द के बहुत विनाशकारी परिणाम साबित हुए यह ऐसा युध्द था जिसने अंग्रेजों को 200 वर्ष शासन करने का मार्ग प्रशस्त किया

क्या था द्वैत शासन ?

द्वैत शासन का अर्थ है बिना उत्तरदायित्व वाला अधिकार होता था और बिना अधिकार वाला उत्तरदायित्व यानि जिसके पास अधिकार है उसकी कोई जबाबदेही नही है जिसके पास अधिकार नहीं है उसके पास उत्तरदायित्व है (Rights without Responsibility and Responsibility without Rights)

बंगाल में द्वैध शासन (Dual Govt.)

  • फरवरी, 1756 में मीर जाफर के निधन के पश्चात उसके पुत्र नजमुद्दौला को अंग्रेजों द्वारा निम्न शर्तों पर नवाब स्वीकार किया गया
  • निजामत (सैन्य संरक्षण एवं विदेशी मामले) पूर्णतया कंपनी के हाथ में रहेगी।
  • दीवानी मामले के लिए डिप्टी गवर्नर की नियुक्ति की गई, जिसको मनोनीत करने का अधिकार कंपनी को था तथा कंपनी की अनुमति के वगैर जिसे हटाया नहीं जा सकता था।
  • इस प्रकार शासन की वास्तविक शक्ति कंपनी के हाथों में थी एवं दैनिक कार्य नवाब के हाथों में। इस काल में बंगाल में दो शासक हो गये, इसे ही द्वैध शासन प्रणाली कहते हैं।

निजामुदौला के लिए अंग्रेजों की शर्ते

फरवरी 1756 में मीर जाफर के निधन के पश्चात उसके पुत्र नजमुदौला को अंग्रेजों द्वारा निम्न शर्तो पर नबाब स्वीकार किया गया

  • सैन्य संरक्षण व विदेशी मामले पूर्णत: कम्पनी के हाथ में रहेंगें
  • दीवानी मामले के लिए डिप्टी गवर्नर की नियुक्ति की गयी जिसको मनोनीत करने का अधिकार कम्पनी को था तथा कम्पनी की अनुमति के वगैर उसे हटाया नहीं जा सकता था
  • इस प्रकार शासन की समस्त शक्ति कम्पनी के पास थी व दैनिक कार्य नबाब के हाथों में इस प्रकार बंगाल में दो शासक हो गये

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